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 हमारे बारे में 

मजदूर कौन?

जीने के लिए काम सभी करते हैं लेकिन आज समाज दो भागों में बंट चुका है | इसमें एक वह वर्ग है जो शिक्षित है, बड़े दफ्तरों में काम या सरकारी व निजी नौकरी करते हैं, जमीन पर मालिकाना हक़ रखते हैं और ऐशो आराम की ज़िन्दगी जीते है, दूसरा वह है जो दो वक्त की रोटी भी मुश्किल कमा पाते हैं | वह उसी दफ्तर या कारखाने में दिहाड़ी मजदूर हैं, पलायन का शिकार हैं, उस दूसरे वर्ग की जमीन या अन्य सम्पति पर काम करते है | हमारी शिक्षा के हालात यह है कि 8 वीं तक फेल नहीं होते और 9 वीं में पास नहीं होते | इन दोनों की परिस्थिति, समाज और सरकार का इनके प्रति रवैया में भी जमीन आसमान का अंतर है और यह खाई दिन प्रति दिन बढती जा रही है |

असंगठित मजदूर

इस देश के 93 प्रतिशत मजदूर असंगठित क्षेत्र - जैसे ईट भटटे, कुआ खुदाई, होटल, छोटे कारखाने, नरेगा, खेतिहर मजदूर या सड़क पर सामान बेचने का काम करते हैं और उस दूसरे वर्ग का हिस्सा हैं | पर क्या इन्हें सम्मान पूर्वक जीवन जीने का हक़ नहीं है, उन्हें यह हक़ देने की जिम्मेदारी किसकी है ? क्या यह इस देश के बराबर के नागरिक नहीं है ? आज की स्थिति में यह पाना मुश्किल है | संविधान द्वारा दिए गये हकों का बराबर उल्लंघन किया जा रहा है और देश की सम्पति की खींचतान में मजदूर हारता जा रहा है |

यूनियन क्यों ? 

नरेगा में पूरी मजदूरी नहीं मिलती, फेरी वालों  को आम रास्ते पर दुकान लगाने पर परेशान किया जाता है एवं जबरदस्ती हटाया जाता है | कारखाने और ईट भट्टो पर बन्धुआ मजदूरी करवाई जाती है और बच्चे भी काम करते है | नरेगा कानून कहता है कि हर परिवार को 100 दिन का काम मिले और 220 रुपये रोज़ मजदूरी मिले और समय पर भुगतान भी नहीं होता |

​इस सब के लिए कौन जिम्मेदार है ? सरकार का कहना है कि उसके पास समाज कल्याण की योजनाएं जैसे - नरेगा, राशन और पेंशन के लिए पैसे नहीं है| लेकिन कर्मचारियों / अधिकारियों की तनख्वाह हर साल दो बार बढ़ा दी जाती है तो मजदूरों की मजदूरी क्यों नहीं बढाई जाती उनके साथ नाइंसाफी क्यों ?

संगठित होने का हक़ |

मजदूरों के कानून भी देश में रोज़गार और व्यवसाय को बढ़ाने की दुहाई देकरपूंजीपतियों की जरुरत के हिसाब से बदले जा रहे है | नरेगा मजदूरी कम करके यह निश्चित किया जा रहा है कि इन्हें ज्यादा से ज्यादा मजदूर कम से कम दर पर मिल सकें | मजदूरों के कानून बदलकर उनसे बिना पेंशन, छुट्टियाँ, स्थाई रोज़गार के दिन में ज्यादा से ज्यादा काम करवाया जा सके | 

शिक्षा और स्वास्थ्य किसी भी देश की मूलभूत सेवाएं होती है | देश के सभी रागरिकों का इन पर बराबर का अधिकार है | लेकिन इनके स्तर को गिराया जा रहा है और उनका निजीकरण किया जा रहा है | सरकार कम होती मजदूरी और मजदूरों की बढती समस्याओं का जिम्मा भी मजदूरों पर डालती है कि मजदूर पूरा काम नहीं करते और ना ही अपने भविष्य के लिये पैसे बचाते है | लेकिन मजदूरी के अवसर कहां है ? 220 रुपये तक की मजदूरी में घर कैसे चले और बचत कैसे हो ? हमारी मजदूरी कौन तय करता है ? और हम खुद तय क्यों नहीं कर सकते है ?बड़े पूंजीपतियों के करोड़ों के कर्ज आसानी से माफ़ क्यों किये जाते है लेकिन मजदूरों व किसानों का क्यों नहीं किया जाता ? हमें इज्ज़त पूर्वक जीवन जीने का हक आखिर कब मिलेगा ?

ऐसी सामाजिक गैर बराबरी से लड़ने का एक ही उपाय है कि हम संगठित हों और अपनी आवाज उठायें | सरकार से अपनी शर्तें मनवाने का और हमारे हकों को सही मायने में गाव और सड़क तक पहुंचने का यही तरीका है कि हम एकजुट हो आवाज उठायें | 

राजस्थान असंगठित मजदूर यूनियन का गठन: 26 अक्टूबर 2017 को अजमेर जिले की जवाजा पंचायत समिति की पाल पर एक सभा रखी गई थी जिसमें अजमेर,पाली,राजसमन्द, और भीलवाडा जिले के मजदूरों ने मिलकर सभी तरह के काम करने वाले मजदूरों द्वारा सबकी सहमति से राजस्थान असंगठित मजदूर यूनियन बनाने का फैसला लिया था | इस आम सभा में यह भी तय किया था कि यह यूनियन सभी तरह के मजदूरों से जुड़े सभी मुददों पर काम करेगी और उनके हक़ अधिकार दिलाने के साथ साथ वाजिब मजदूरी दिलाये जाने का काम करेगी, किसी भी तरह की मजदूरी करने वाले लोग इसके सदस्य बन सकेगें | अजमेर जिले की करला गाव से 22 जून 2018 को नरेगा में पूरी मजदूरी का आन्दोलन आज राज्य के पांच जिलों की 100 से अधिक ग्राम पंचायतों में फैला गया है | जो मजदूर यूनियन से जुड़े हैं - उन्होंने नरेगा में 100 दिन के काम की गारंटी, काम के पूरे दाम की गारंटी, आवेदन की रसीद लेने की गारंटी को लड़ कर लिया है | यूनियन से जुड़े मजदूर पूरी मजदूरी भी ले रहे हैं और काम पूरा होने पर समय से पहले घर भी जा रहे हैं |

यूनियन का 220 रु सदस्यता शुल्क 1 वर्ष के लिए रखा गया है | जिससे यूनियन की गतिविधियां चलती है |

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